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CSJMU में प्राकृत भाषा के पुनर्जीवन एवं संवर्धन पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन

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CSJMU seminar on Prakrit language revival by Jain Research Chair – April 2025

कानपुर, 22 अप्रैल 2025।
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज में स्थापित आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन शोध पीठ के तत्वावधान में आज “प्राकृत भाषा का पुनर्जीवन, संवर्धन एवं शोध” विषय पर एक एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक के संरक्षण और प्रेरणा में संपन्न हुआ।

कार्यक्रम का शुभारंभ प्रति-कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी की अध्यक्षता में हुआ, जबकि साबरमती गुरुकुल, अहमदाबाद से पधारे डॉ. दीपक कोइराला ने मुख्य अतिथि एवं प्रधान वक्ता के रूप में संगोष्ठी को संबोधित किया। डॉ. अंशु जैन, शैली जैन एवं रेनू जैन ने मंगलाचरण प्रस्तुत कर कार्यक्रम का भावपूर्ण आरंभ किया।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. अवस्थी ने कहा कि प्राकृत भाषा एक अत्यंत समृद्ध एवं प्राचीन भाषा है, जिसका साहित्य धार्मिक, दार्शनिक और नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण है। उन्होंने जैन धर्म को वैदिक सनातन धर्म का अभिन्न और पूरक अंग बताया तथा विश्वविद्यालय में जैन आगम साहित्य हेतु एक पृथक पुस्तकालय की स्थापना की भावना व्यक्त की।

मुख्य वक्ता डॉ. दीपक कोइराला ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राकृत भाषा में अहिंसा, सदाचार और मानव कल्याण के गहन सूत्र निहित हैं। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश इसी भाषा (प्राकृत एवं पाली) में दिए। उन्होंने गुरुकुल-शिक्षा प्रणाली को प्राच्य भाषाओं के संरक्षण व आधुनिक संदर्भ में रोजगारपरक बनाने की दिशा में प्रभावी साधन बताया।

स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज के निदेशक डॉ. सर्वेश मणि त्रिपाठी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि जैन शोध पीठ प्राकृत भाषा के संवर्धन हेतु निरंतर सक्रिय और प्रतिबद्ध है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रभात गौरव मिश्रा द्वारा किया गया एवं सुमित कुमार जैन ‘शास्त्री’ ने आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर शोध न्यास ट्रस्टी सी.ए. अरविंद कुमार जैन, स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज के सभी शिक्षकगण एवं अनेक छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। संगोष्ठी ने न केवल शास्त्रीय भाषाओं के महत्व को रेखांकित किया, बल्कि प्राकृत भाषा के पुनर्जीवन हेतु भविष्य की योजनाओं की दिशा भी स्पष्ट की।

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